मिश्रा सर, आप तो ऐसे न थे ! …आपने जिस तरह हम सभी से मुख मोड़ा , यह अचानक हमलोगों से बहुत कुछ छीन गया ! आपके बगैर विद्यालय-परिसर , स्टाफरूम , सब सूना-सूना सा लग रहा है , चारो तरफ वातावरण में एक अजीब सी मायूसी छायी हुई है। आपकी कुर्सी गेट की तरफ टकटकी लगाए प्रतीक्षारत है …। कौन अब उन्मुक्त हास- परिहास करेगा…? आखिर हम सभी से क्या भूल हुई , जो आप हमें छोड़ गए ! लेकिन जिनके साथ आपने जनम – जनम तक साथ निभाने का वादा किया था , उन्हें क्यों छोड़ा ?
आपने यह क्यों नहीं सोचा कि वह खुद को संभालेगी, या जीवन – मृत्यु से जूझ रहे …वेंटिलेटर पर एक -एक साँस से संघर्षरत आपके सिद्धू और जिग्गू को ? आपने यह क्यों नहीं सोचा कि आपकी जीवन – संगिनी एक साथ विपत्ति के इतने बड़े पहाड़ का सामना कैसे करेंगी ? वह आपकी अंतिम यात्रा का सामना करें या जीवन – मृत्यु से जूझ रहे आपके कोमल-प्राण जिगर के टुकड़े को अपने श्वेतवर्णा आँचल में संभाले , कि विधाता के इस क्रूर मजाक पर आँसू बहाए ? उनके तो आँसू भी सूख चुके हैं।
हम समझ सकते हैं , कि आपसे आपके जिगर के टुकड़े की छटपटाहट देखी न गयी होगी , आखिर कोई भी पिता , जो अपनी संतान के पांव में कांटा चुभने पर भी बेचैन हो जाता हो , वह एक साथ अपनी आँखों के सामने छटपटा रहे अपने जिगर के दोनों टुकड़ों के शरीर से रिस रहे लहू को और उनकी कराह को कैसे बर्दाश्त कर सकता है ? लेकिन उस वक्त आपको बर्दाश्त करना चाहिए , सोचना चाहिए कि आपकी अर्धांगिनी आपके बिना कैसे इस दुनिया में संघर्ष कर पाएंगी । अब आपके बच्चे अपने पिता के बिना कैसे खुश रह पाएंगे ? वह किससे रूठेंगे ? वे यदि रूठ भी गए तो मनाएगा कौन ?
आपका जिग्गू जब भी होश में आता है , आपको और मम्मी को खोजता है । उसे नहीं पता कि माँ उसके पिता की अंतिम यात्रा में हैं । आप अब नहीं रहे यह कौन समझाएगा उसे ? मां ? जिन्हें खुद विश्वास नहीं हो रहा ! उन्हें लगता है कि यह सभी घटनाक्रम किसी दुःस्वप्न से अधिक कुछ नहीं ! वह बार – बार खुद ही चिकोटी काटकर कन्फर्म हो रही हैं कि यह झूठ तो नहीं । काश यह गलत होता ! आपका अबोध पुत्र कैसे समझेगा कि आप जहाँ चले गए , वहां से नहीं लौट पाइएगा …! नहीं ! ! वह अभी यह समझने वाला नहीं हुआ है।
जब वह समझदार हो जाता तब जाते ! आपके बच्चों की माध्यमिक परीक्षा हो जाती , तब जाते !! आपकी घंटी में वे अब भी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं …उन्हें लग रहा है जीतेंद्र मिश्रा सर मृत्यु को जीतकर , दूसरी दुनिया से लौट आएंगे…आपका जिग्गू जब भी होश में आता है , पापा पापा कह रहा है। आपके सभी साथी आपके उन्मुक्त परिहास… आपके चेहरे के उतार-चढ़ाव …गुस्सा…प्यार….और ठहाके की प्रतीक्षा कर रहे हैं…
हमें याद है कि जब आपका सेलेक्शन इस विद्यालय में हुआ तो आप नहीं आना चाह रहे थे …लेकिन बड़े जतन के साथ हमलोगों नेअभिप्रेरित करके आपको यहां ज्वाइन करने के लिए मनाया था । एक बार फिर आ जाइए ….सिमुलतला आवासीय विद्यालय का कण-कण आपकी बाट जोह रहा है … आप कहाँ चले गए साथी…
आपने साथी की प्रतीक्षा में सुधांशु !