भारतीय नौसेना से विदा हुआ पहला विध्वंसक जहाज ‘राजपूत’

विध्वंसक जहाज ‘राजपूत’

नई दिल्ली। भारतीय नौसेना के पहले काशीन-श्रेणी के विध्वंसक आईएनएस राजपूत को 41 शानदार वर्षों तक देश की सेवा करने के बाद शुक्रवार को सेवामुक्त कर दिया गया। विशाखापत्तनम में एक भव्य समारोह के दौरान जहाज से राष्ट्रीय ध्वज, नौसेना पताका और डीकमिशनिंग पेनेंट को सूर्यास्त के समय उतारा गया।

नौसेना में शामिल होने के बाद से यह जहाज 7,87,194 समुद्री मील से अधिक की दूरी तय कर चुका है जो दुनिया भर में 36.5 बार और पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी के 3.8 गुना नेविगेट करने के बराबर है।​

​भारतीय नौसेना में डी-51 नामक इस राजपूत वर्ग के जहाज की प्रमुख विध्वंसकों में गिनती होती रही है। इस जहाज ने मुख्य रूप से सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के लिए परीक्षण मंच के रूप में कार्य किया है। यह जहाज खतरनाक हथियारों और सेंसर की एक सरणी से लैस था, जिसमें सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, विमान-रोधी बंदूकें, टॉरपीडो और पनडुब्बी रोधी रॉकेट लॉन्चर शामिल थे।

आईएनएस राजपूत लंबी दूरी की सुपरसोनिक क्रूज ब्रह्मोस मिसाइल दागने के लिए फिट होने वाला पहला जहाज भी था। राष्ट्र के लिए अपनी चार दशकों की शानदार सेवा के दौरान जहाज को ‘राज करेगा राजपूत’ के आदर्श वाक्य और अदम्य भावना के साथ पश्चिमी और पूर्वी दोनों बेड़े में सेवा करने का गौरव हासिल है।

डी-51 नामक इस राजपूत वर्ग के जहाज की प्रमुख विध्वंसकों में गिनती होती रही है। राजपूत वर्ग का यह जहाज सोवियत काशिन श्रेणी के विध्वंसक का संशोधित संस्करण है। डिजाइन में बदलाव करके इसे भारतीय नौसेना के लिए पूर्व सोवियत संघ में बनाया गया था।

आईएनएस राजपूत का निर्माण निकोलेव (वर्तमान में यूक्रेन) में 61 कम्युनार्ड्स शिपयार्ड में उनके मूल रूसी नाम ‘नादेज़नी’ यानी ‘होप’ के तहत किया गया था। जहाज के निर्माण की शुरुआत 11 सितम्बर, 1976 को हुई थी और 17 सितम्बर, 1977 को लॉन्च किया गया था।

राजपूत वर्ग के इस प्रमुख जहाज को 04 मई, 1980 को पोटी, जॉर्जिया में यूएसएसआर में भारत के तत्कालीन राजदूत आईके गुजराल और जहाज के पहले कमांडिंग ऑफिसर कैप्टन गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी ने नौसेना के बेड़े में शामिल किया था। यह भारतीय सेना की राजपूत रेजिमेंट से संबद्ध होने वाला पहला भारतीय नौसेना जहाज भी था। यह जून, 1988 तक मुंबई में और उसके बाद पूर्वी बेड़े के हिस्से के रूप में विशाखापत्तनम में तैनात था।