वर्ल्ड क्लास स्वास्थ्य के फर्जी दावे

भारत में कोरोना संकट

बृजेश कुमार राय। बीते दो सप्ताह से दिल्ली में कोरोना के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दिल्ली में 17 हजार केस मिलने के साथ ही इसने मुंबई को भी पीछे छोड़ दिया। वहीं दिल्ली के आम लोग बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं चारों तरफ हाहाकार जैसी स्थिति है 

एक तरफ दिल्ली सरकार सैंकड़ों करोड़ खर्च करके अखबारों में दावा करती है कि दिल्ली के पास वर्ल्ड क्लास स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, लेकिन दूसरी ओर आज कोरोना के इस नए चरण में लोगों को बेड तक नहीं मिल रहे 

सच्चाई यह है कि केजरीवाल सरकार केंद्र के कार्यों का श्रेय लूटने, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का ठीकरा अप्रवासियों पर फोड़ने और अपनी नाकामी को छुपाने के लिए नए-नए पैंतरे अपनाने में जुटी रही एक साल में कुछ भी ऐसा कार्य नहीं किया, जिससे दिल्ली की स्थिति बेहतर हो, न ही दिल्ली आज इस स्थिति को सँभालने में सक्षम दिख रही है जब समय स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने का थातब दिल्ली सरकार केस कम करने का श्रेय लूटने में व्यस्त थी।  

दिल्ली के अस्पतालों में नही है पर्याप्त वेंटिलेटर  

बृजेश कुमार राय, बीजेपी प्रवक्ता (दिल्ली)

कोरोना मरीजों को साँस लेने में दिक्कत होती है वुहान (चीन) में हुए एक अध्ययन से ये तथ्य सामने आई है कि 5 प्रतिशत कोरोना पॉजिटिव मरीजों को ICU अर्थात इंटेंसिव केयर यूनिट की आवश्यकता पड़ती है वही 2.3 प्रतिशत मरीजों को वेंटिलेटर की बहुत अधिक आवश्यकता होती है नार्मल साँस लेने की दर प्रति मिनट 15 होती है लेकिन अगर यह आंकड़ा 28 साँस/मिनट को छू ले तो स्थिति सँभालने के लिए वेंटिलेटर अवश्य चाहिए ही होती है 

अगर बात दिल्ली के पास उपलब्ध वेंटिलेटर की करें तो दिसंबर 2019 तक दिल्ली में केवल 466 वेंटिलेटर थेजिनमें से 23 काम नही कर रहे थेवही 11 को ठीक करवाने की प्रक्रिया चल रही थी यानी केवल 432 वेंटीलेटर काम के थेये बात 2 दिसंबर 2019 को दिल्ली विधानसभा में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने खुद बताया बीते एक साल में इसमें कोई अधिक इजाफ़ा नही हुआ 

ICU की है भारी कमी  

दिल्ली के किन-किन अस्पतालों में ICU की सुविधा उपलब्ध है, इस सवाल के जबाब में दिल्ली सरकार के दिए आंकड़े और अचंभित करते हैं दिसंबर, 2019 में ही विधानसभा के पटल पर दिए उत्तर के मुताबिक दिल्ली के 28 अस्पतालों की सूची जो दी गयी थी उनमें से 12 में ICU ही नही थे, वही 6 अस्पतालों में वेंटीलेटर की कोई सुविधा नहीं थी

28 में से एक अस्पताल के बारे में सरकार के पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी देश की राजधानी 434 वेंटिलेटर और 16 ICU वाले अस्पतालों से कोरोना की जंग लड़ने में कितना तैयार था, यह कहना मुश्किल नहीं हैदेश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व न होता, देश के गृहमंत्री अमित शाह ने व्यवस्था खुद अपने हाथों में न ली होती तो दिल्ली में चारों तरफ लाश बिछे होते 

बेहतरीन हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के दावों को धता बताते ये ऐसे आंकड़े है जो बताते है कि बजट का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य के नामपर आवंटित तो किये गए, लेकिन वह खर्च बुनियादी चीजों पर नहीं हुए कोरोना वायरस से लड़ने के लिए केजरीवाल सरकार न तो मार्च में तैयार थी, न ही वह अब है 

आबादी 2 करोड़, बेड की संख्या महज 12 हजार  

दिल्ली सरकार के इकॉनोमिक सर्वे (2020-21) की माने तो दिल्ली सरकार के अस्पतालों में केवल 12464 बेड हैंदिल्ली के सभी अस्पतालों में को मिलकर भी कुल 54321 बेड ही मरीजों के लिए उपलब्ध हैं लगभग आधे बेड प्राइवेट अस्पतालों में हैंवही केंद्र सरकार, MCD के अस्पतालों में 28 प्रतिशत महज 23 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली सरकार के अस्पतालों में हैं 

सभी तरह के अस्पतालों में उपलब्ध बेड को दिल्ली की आबादी के हिसाब से देखे तो 2011 में प्रति हजार लोगों पर 2.50 बेड उपलब्ध थे, यह संख्या 2019 तक आते-आते 2.74 हुआ यानी एक हजार लोगों के ऊपर अस्पतालों में आज भी 3 ही बेड उपलब्ध हैं इसलिए दो करोड़ की आबादी में 12464 बेड वाले अस्पताल चलाने वाले हर बात के लिए दोष दूसरों पर क्यों मढ़ते हैं, समझना कठिन नहीं है  

अस्पतालों की वजाए डिस्पेंसरी बढ़े  

दिसंबर 2019 तक दिल्ली में 315 मोहल्ला क्लिनिक चल रहे थे जिन मोहल्ला क्लिनिक को वर्ल्ड क्लास कहा गया था, ये डिस्पेंसरी से ज्यादा कुछ नहीं है निजी लैब में टेस्ट करवाने और दवाई बांटने से ज्यादा ये कुछ कर नहीं सकते वहां न तो कोरोना का टेस्ट हो सकता है, न ही वहां कोरोना के मरीजों के इलाज अथवा रुकने की व्यवस्था है ये मोहल्ला क्लिनिक आज भी कोरोना की इस जंग में किसी काम के नहीं हैं यही नहीं, जब पूरा दिल्ली कोरोना से जंग लड़ रहा था, तो मोहल्ला क्लिनिक कोरोना के मरीज निकालने वाले जगह बन गए। कोरोना से लड़ने की जगह वे आज भी नहीं बन पाए हैं

पिछले साल जब कई मोहल्ला क्लिनिकों से कोरोना के मरीज निकलने शुरु हुए तो डॉक्टरों ने आना ही बंद कर दियाआज अधिकांश मोहल्ला क्लिनिक  तो साफ़-सुथरे रहते हैं, न ही वहां अभी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तैयार किया जा सका है

दिल्ली आज फिर से आपदा के मुहाने पर खड़ा है और मुख्यमंत्री महज बयानबाजी और टीवी पर चेहरा चमकाने में व्यस्त हैं अस्पतालों में बेड नहीं है तो होटल और मैरेज हॉल में बेड बनाए जा रहे हैं हालत ख़राब होने के बावजूद न तो विपक्षी दलों को सरकार भरोसे में ले रही है, न ही कोरोना से लड़ने की उसकी साफ़ नियत दिख रही है दिल्ली आज दिशाहीन मुख्यमंत्री और लापरवाह स्वास्थ्य मंत्री की वजह से देश में दूसरा सबसे बड़ा कोरोना सेंटर बन चुका है उम्मीद अब गृह मंत्री अमित शाह जी से है कि वे ही दिल्ली को बचा पाएंगे


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