डॉ. सुधांशु कुमार। मैं हस्तिनापुर से बर्बरीक बोल रहा हूं ! श्रीकृष्ण ने जबसे मेरे सर को हस्तिनापुर के पहाड़ पर अटकाया , मैं तबसे यहीं पड़ा – पड़ा हस्तिनापुर का वाकया ‘लाइव टेलिकास्ट’ करता आ रहा हूं । आज भी कर रहा हूं । तब से अबतक हस्तिनापुर की धूर्तता , प्रपंच , चालबाजी , मूफ्तखोरी और मक्कारी की दास्तान बयां करते – करते , देखते-देखते मेरा कटा हुआ सर फटा जा रहा है।
बंधु ! हस्तिनापुर की मूफ्तखोरी और मक्कारी द्वापर से चलते – चलते इस कलयुग में निकम्मेपन पर आकर अटक सी गयी है । हस्तिनापुर के कौरवों ने युद्ध के अंतिम दिनों में मुफ्तखोरी का जो चक्रव्यूह रचा है , उससे वार मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट श्रीकृष्ण अच्छे-खासे ‘टेंशन’ में हैं । उन्हें पछतावा हो रहा है कि उन्होंने युद्ध में हथियार न उठाने का डिसिजन ही क्यों लिया? शाख दांव पर है!
बंधु ! मैंने द्वापर से अब तक कई बार हस्तिनापुर को लुटते , कटते , पिटते , चीखते और चिल्लाते देखा है। लंगड़े तैमूर की ‘लंगई’ देखी , उसके निर्मम संपोलों द्वारा तैयार किया गया लाखों लोगों के नरमुंडों के स्तूप देखे , कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार देखा , बात-बात पर चिल्ल-पों मचानेवाले मानवाधिकारियों की कश्मीरी नरसंहार पर चुप्पी देखी , आज आतंकियों के मारे जाने पर पुरस्कार वापस करनेवाले गैंग का तबका अप्रत्याशित सन्नाटा देखा , माननियों की मक्कारी …हस्तिनापुर की हवा में ‘पीएम टू प्वाइंट फाइव’ की मात्रा बढ़ने पर सरकारों की खबर लेने और उन्हें निर्देश देनेवाले ‘सुप्रीम मीलार्ड’ की उस कश्मीरी नरसंहार पर खामोशी देखी , वहां की अबलाओं की सिसकियां , इस धरा की चीत्कार और धृतराष्ट्रों की अक्ल पर पड़ा हुआ सत्ता-मोह का पत्थर भी देखा !
बंधू ! आप सोंच रहे होंगे कि इस लाइव टेलिकास्ट के बीच में यह इतिहास-भूगोल कहाँ से आ टपका ? लेकिन वर्तमान का मूल्यांकन करते वक्त अतीत पर दृष्टिपात करना जरूरी होता है। इस हस्तिनापुर के अतीत और अवचेतन में मक्कारी और कायरता की कई दुखद स्मृतियां ‘दफन’ हैं , जिन्हें आज के सत्तासीन बलात भूल जाना चाहते हैं और उन्हीं स्मृतियों में है नादिरों का नंगापन , जयचंदो- मीरजाफरों की गद्दारी से ‘क्रिएट सिचुएशन’ में ‘क्लाइव’ के साढे तीन सौ चमगादड़ों के सामने सिराजुद्दौला के नौ हजार योद्धाओं के आत्मसमर्पण और उनकी गर्दन उतारने की त्रासदी।
काबुल से आकर मात्र ढाई हजार घुड़सवारों के साथ आतंकी बर्बर बाबर का भारत भूमि का रौंदना और यहां के ‘अगरधत्तों’ का तमाशबीन बने रहना । हल्दीघाटी के युद्ध में आक्रांता अकबर के दाँत खट्टे करनेवाले और मातृभूमि के रक्षार्थ घास की रोटियाँ खानेवाले महाराणा को ‘शिखंडी’ इतिहासकारों द्वारा हासिए पर धकेले जाने और आक्रांता अकबर को महान साबित करने का कुचक्र !
खैर , तब की अपेक्षा अभी का सीन कुछ अलग , पर कैरेक्टर अधिक अलग नहीं है । अभी मक्कार कौरवों ने साइंस का सहारा लेकर दुश्मन देशों के सहयोग से शिखंडियों के कई क्लोन तैयार कर लिए हैं । कुछ नारेबाज हैं , तो कुछ पेपरबाज ! कुछ को उन्होंने मीडिया में बिठा रखा है जो अपने एजेंडे को फेल होते देख , गीदड़ों के स्टाइल में समवेत स्वर में गर्धव ध्वनि निःसृत करने लगते हैं। शिखंडी के कुछ क्लोन को बड़े भाई का कुर्ता और छोटी बहन की सलवार पहनाकर धरने पर बिठा दिया गया है और एक शिखंडी को फूल पैंट शर्ट पहनाकर , हाथों में तिरंगा और संविधान थमाकर , उसके माइंड को वाश करके कौरवों ने अपने पक्ष से पांडवों से भिड़ा दिया गया है।
बंधुवर! इस बार कुरुक्षेत्र का सिचुएशन कुछ अलग ही है । कुरुक्षेत्र के आसपास के किसानों द्वारा ‘पराली’ जलाने से अचानक वातावरण की क्वालिटी डाउन हो गयी है । भीष्म पितामह श्वसन संबंधी रोग से ग्रसित होने के कारण बेड रेस्ट में चले गए हैं । इधर अर्जुन सहित सभी पांडव तंबुओं में एल ए डी स्क्रीन पर भारत बंग्लादेश के क्रिकेट मैच के मजे ले रहे हैं । उनका कहना है कि युद्ध तो होता ही रहता है , युद्ध में क्रिकेट के मजे भी उठा लिए जाए ।
इधर कुरुक्षेत्र में कृष्ण नाबालिग अभिमन्यु व कुछ अन्य योद्धाओं के साथ अकेले किसी तरह युद्ध को मेनटेन कर रहे हैं । मौके की नजाकत देखते हुए कौरवों ने फूलपैंट शर्ट वाले शिखंडी के द्वारा स्ट्रैटजी के तहत पांडवों के सैनिकों के बीच चरस वाली बीड़ियों का बंडल मूफ्त में बंटवा दिया है । सारे सैनिक चरस वाली बीडी ‘धूँकते’ हुए अर्धचेतनावस्था में चले गए हैं।
एक तरफ सैनिक मूफ्तखोरी की चरस वाली बीड़ी पीकर अर्धचेतनावस्था में ….दूसरी तरफ गांडीवधारी अर्जुन एंड ब्रदर्स भारत-बंग्लादेश क्रिकेट में मजे लूट रहे हैं और उधर कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण अकेले मगजमारी कर रहे हैं …पहली बार मैं चक्रधारी को चमगादरों के सामने चिंतित देख रहा हूं ….हस्तिनापुर फिर संकट में है …भीष्म और कृष्ण टेंशन में दिख रहे हैं कि आखिर होगा क्या ? इधर स्थिति नियंत्रित देख , गांधारी पुत्र मसाज करवाने बैंकाक निकल लिए !
(व्यंग्य) : लेखक व्यंग्यकार हैं