साल 1983 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि भारत में ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ यानी सबसे संगीन और घिनौने मामले में ही फांसी की सजा होगी. साल 2012 में निर्भया मामले को भी कोर्ट ने इसी श्रेणी में माना था और दोषियों को फांसी की सजा मुकर्रर की गई थी. उन्हें फांसी का वक्त करीब आ रहा है.
फांसी की सजा फाइनल होने के बाद डेथ वॉरंट का इंतजार होता है. दया याचिका खारिज होने के बाद ये वॉरंट कभी भी आ सकता है. वॉरंट में फांसी की तारीख और समय लिखा होता है. मृत्युदंड वाले कैदी के साथ आगे की कार्यवाही जेल मैनुअल के हिसाब से होती है.
फांसी के समय की बात करें तो ये महीनों के हिसाब से अलग-अलग होता है. सुबह 6, 7 या 8 बजे लेकिन ये वक्त हमेशा सुबह का ही होता है. इसके पीछे कारण ये बताया जाता है कि सुबह बाकी कैदी सो रहे होते हैं. जिस कैदी को फांसी दी जानी है, उसे पूरे दिन मौत का इंतज़ार नहीं करना पड़ता. साथ ही परिवारवालों को अंतिम संस्कार का भी दिन में मौका मिल जाता है.
फांसी वाले दिन सुबह-सुबह सुप्रीटेंडेंट की निगरानी में गार्ड कैदी को फांसी कक्ष में लाते हैं. फांसी के वक्त जल्लाद के अलावा तीन अधिकारी मौजूद होते हैं. ये तीन अफसर जेल सुप्रीटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर और मजिस्ट्रेट होते हैं. सुप्रीटेंडेंट फांसी से पहले मजिस्ट्रेट को बताते हैं कि मैंने कैदी की पहचान कर ली है और उसे डेथ वॉरंट पढ़कर सुना दिया है. डेथ वॉरंट पर कैदी का हस्ताक्षर होता है.
साथ ही फांसी देने से पहले कैदी को नहलाया जाता है और नए कपड़े पहनाए जाते हैं. जिसके बाद उसे फांसी के फंदे तक लाया जाता है. बता दें, फांसी देने से पहले व्यक्ति की आखिरी इच्छा पूछी जाती है. जिसमें परिवार वालों से मिलना, अच्छा खाना या अन्य इच्छाएं शामिल होती हैं. जो भी व्यक्ति अपनी जिंदगी खत्म करने से पहले करना चाहता है.
जिस अपराधी को फांसी दी जाती है उसके आखिरी वक्त में जल्लाद ही उसके साथ होता है. सबसे मुश्किल काम जल्लाद का ही होता है. फांसी देने से पहले जल्लाद अपराधी के कानों में कुछ बोलता है जिसके बाद वह चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच देता हैं.आखिरी वक्त जल्लाद कान में कहता है कि हिंदुओं को राम राम और मुस्लिमों को सलाम. मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं. मैं आपके सत्य की राह पे चलने की कामना करता हूं.