नवरात्र के चौथे दिन मां भवानी के चौथे स्वरूप माता कूष्मांडा की पूजा-अर्चना होती है। मान्यताओं के अनुसार, जब इस संसार पर सिर्फ अंधकार था तब देवी कूष्मांडा ने अपनी ईश्वरीय हास्य से इस संसार की रचना की। इसी वजह से माता कूष्मांडा को संसार के रचनाकार के रूप में जाना जाता है। नवरात्र के चौथे दिन माता कूष्मांडा की पूजा का विशेष महत्व है।
कौन है माता कूष्मांडा
‘कु’ का अर्थ है ‘कुछ’, ‘ऊष्मा’ का अर्थ है ‘ताप’ और ‘अंडा’ का अर्थ है ‘ब्रह्मांड’। शास्त्रों के अुनसार मां कूष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से संसार में फैले अंधकार को दूर किया था। चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कूष्मांडा को सभी दुखों को हरने वाली मां कहा जाता है। यह सूर्य में निवास करती हैं। यही वजह है कि माता कूष्मांडा के पीछे हमेशा सूर्य रहते हैं।
माता अपने भक्तों को उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ आयु का वरदान देती हैं। मान्यता है कि श्रद्धा भाव से यदि माता कूष्मांडा को जो भी अर्पित किया जाए, वो उसे प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेती हैं। लेकिन मां को मालपूए का भोग अतिप्रिय है।
इस मंत्र से करें पूजा
कूष्मांडा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
स्तोत्र पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥